स्प्रिन्ग-कटार
स्प्रिन्ग-कटार (Spring Catarrh; Vernal Conjunctivitis) को आंखों का नजला कहा जा सकता है। बच्चों और युवाओं में पाए जाने वाले इस रोग में आंखों में खुजलाहट रहती है, आंखों से पानी जाता है ओर आंखें लाल हो जाती है। गर्मियों के साथ रोग उभरता है और मौसम ठंड़ा होने पर खुद दब जाता है। कंजक्टाइवा के इस अजूबे रोग पर प्रस्तुत है यह लेखः
स्प्रिन्ग-कटार किस किस्म का मर्ज है?
यह आंखों के सामने वाले सफेद हिस्से को ढापने वाली बाहरी झिल्ली-कंजक्टाइवा का रोग है। इसमें आंखों में एक तरह से नजला-सा हो जाता है। दोनों आंखों से पानी जाता है, आंखें लाल रहने लगती है और उनमें जलन और खुजलाहट रहती है।
क्या यह छूत का रोग है?
नहीं, आंख दुखनी आना और स्प्रिन्ग कटार एक-दूसरे से बिल्कुल अलग रोग है। आंख दुखनी आने पर आंख कहीं ज्यादा लाल होती है, उससे पीव जाती है और पलकें चिपचिपी हो जाती है। उसके लक्षण स्प्रिन्ग कटार की तुलना में कहीं ज्यादा उग्र होते हैं।
स्प्रिन्ग कटार किस कारण होता है?
यह एक एलर्जिक विकार है। इसमें आंख हवा में फैले तत्वों के प्रति असामान्य रूप से संवेदनशील हो जाती है, जिससे रोग हो जाता है।
यह रोग संक्रामक नहीं है। इसलिए एक व्यक्ति से दूसरे में इसके फैलने को कोई डर नहीं होता।
क्या वह बसंत ऋतु का रोग है?
नहीं, यह ग्रीष्म ऋतु का रोग हे, जो गर्मियों के आगमन के साथ उभरता है ओर तब तक बना रहता है जब तक सर्दी नहीं आ जाती। शीत ऋतु में यह आमतौर से दबा हुआ रहता है। पर अगली गर्मी के आते ही यह फिर से प्रकट हो जाता है और यह सिलसिला इसी तरह से तब तक कायम रहता है जब तक कि रोग पूरी तरह दूर नहीं हो जाता।
यह किस उम्र का रोग है?
यह बच्चों और किशोर पीढ़ी का रोग है। लड़कियों की अपेक्षा लड़के इससे ज्यादा पीड़ित होते हैं।
स्प्रिन्ग-कटार रोग के प्रमुख लक्षण क्या होते हैं?
स्प्रिन्ग कटार की दो किस्में है- एक में पलकों की अंदरूनी सतह की कंजेक्टाइवा में दूधिया रंग के दाने उठ आते हैं। दूसरी किस्म में आंख के सफेद हिस्से और स्वच्छ पटल कार्निया के मिलने के क्षेत्र में दाने उठते हैं, पाया जाता है।
इसलिए इलाज का मकसद मरीज की तकलीफ को कम करना मात्र होता है। आंखों को बंद कर बर्फ का सेंक देने से भी राहत मिलती है। लक्षणों की तीव्रता को कम करने में दवाएं भी उपयोगी हैं। स्टीरॉयड वर्ग की औषधियां सबसे प्रभावशाली हैं। बाजार में यह डेक्सोना, डेक्सिन, पाइरिमोन और बेटेनोसाल आदि के नाम से मिलती है। इनसे लक्षण पूरी तरह शांत तो हो जाते हैं, पर दवा बंद करने पर तकलीफ प्राय: दुबारा शुरू हो जाती है। लम्बे समय तक इनका बराबर इस्तेमाल खतरनाक होता हे। उससे आंख में काला मोतिया और मोतियाबिंद हो जाता है। यह दुष्प्रीााव स्प्रिन्ग कटार की तकलीफ से कहीं ज्यादा बुरा है। इसलिए नेत्र चिकित्सक की सलाह के मुताबिक ही स्टीरॉयड दवाओं का इस्तेमाल करना ठीक है। स्वेच्छा से उन्हें जारी रखना खतरे से खेलना है।
दोनों ही किस्म में आंखों में जलन ओर खुजलाहट रहती है, रोशनी में आंखें चौधिया जाती है, उनसे पानी झरता है और सफेद धागे जैसा स्राव जाता है। आंखे लाल रहने लग सकती है और रोगी का मन करता है कि उन्हें मलता रहे। पलकों में दाने उठने पर पलकें भारी हो जाती है, जिससे एक या दोनों आंखे छोटी दिखने लगती है।
इस रोग का निदान केसे किया जाता है?
रोग के लक्षण खासे क्लासिकल होते हैं, इसलिए इसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं आती। पलकों में होने वाले स्प्रिन्ग कटार ओर रोहे में लक्षण कुछ हद तक मिलते जुलते हैं, पर नेत्र रोग विशेषज्ञ के लिए उनमें भेद कर पाना मुश्किल नहीं होता। रोहे में आंख में खुजलाहट इतनी नहीं होती और मौसम के साथ इतना गहरा जुड़ाव नहीं हाोता ाजैसा स्प्रिन्ग कटार में सोडियम क्रोमोग्लाइकेट एवं कीटोटिफेन नामक दवाओं के साथ ऐसी समस्याएं नहीं होती। यह एलर्जी रोधक दवाएं है, जो रोग की जड़ पर असर करती हैं। इसका काम जिस्म या आंख में उन जैव रसायनों की उत्पत्ति को रोकना है जो एलर्जी क्रिया में भाग लेते हैं। यह दवा बाजार में फिनटाल और एअबलान आईड्राप्स के नाम से बिकती है। पूरी तरह प्रभावशाली होने के लिए दवा, लक्षण शुरू होने से पहले ही आरम्भ करनी पड़ती है। यह तभी मुमकिन है जब रोग का व्यवहार पूर्वानुमति हो। आंख में लाली और पानी की समस्या को काबू में लाने के लिए स्रावरोधक औषाधियां भी दी जाती है। धूप का चश्मा पहनने से भी आराम मिलता है। ऊपर की पलक में बड़े-बड़े दाने उभर आएं, तो क्रियोथेरेपी द्वारा उन्हें दूर करने के बारे में भी सोचा जा सकता है।
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