लासिक
ऑंखों की दृष्टि के तीन प्रमुख दोष होते हैं, मायोपिया (Myopia), दूर का साफ न दिखना हाइपरमेट्रोपिया (Hypermetropia) पास व दूर का साफ न दिखना व एस्टिगमेटिज्म (Astigmatism)। पास व दूर दोनों का धुंधला व कुछ तिरछा दिखना मायोपिया व हाइपरमेट्रोपिया के साथ-साथ एस्टिग्मेटिज्म का मिश्रण भी पाया जाता है, अर्थात् काम्पलेक्स नम्बर। अभी तक इन सभी का मुख्य इलाज चश्मा ही रहा है। निगाह का एक और दोष है, प्रेसबायोपिया (Presbyopia) जो कि आयु से सम्बन्धित है, तथा हर व्यक्ति को लगभग 40 साल की आयु पर शुरू होता है। इसमें व्यक्ति की पास के बारीक काम करने की रोशनी कम हो जाती है, जैसे पढ़ाई-लिखाई, सुई में धामा डालना, दाल-चावल बीनना इत्यादि। इसका इलाज है पढ़ने वाला चश्मा। इस चश्में का नम्बर लगभग एक-डेढ़ साल बाद बदलता रहता है, तथा आँख की जाँच करवा कर सही नम्बर का चश्मा दोबारा बनवाना पड़ता है।
चश्में की उपयोगिता सीमित है, सौन्दर्य में बाधक है, दोनों ऑंखों के नम्बर भिन्न हो तो एडजस्टमेंट में दिक्कत आती है, टूटने व खोने का खतरा रहता है तथा लम्बे इस्तेमाल में यह मंहगा पड़ता है।
कुछ परेशानी तो कॉन्टेक्ट लेन्स से दूर होती है जो चेहरे की सुन्दरता से जुड़ी है, परन्तु इनका रख रखाव मुश्किल और महंगा है। ऑंखों में संक्रमण का भी खतरा रहता है।
अभी तक चश्मा हटाने के लिए एक ऑपरेशन होता था, रेडियल केराटोटमी ऑपरेशन की सफलता का पक्का दावा न होने, नम्बर वापस आने की संभावना तथा केवल मायोपिया में उपयोगी होने के कारण इसका उपयोग कम किया गया। इस ऑपरेशन में कट लगाने से ऑंख की पुतली कमजोर होती है, चोट लगने से फट सकती है। इस कारण नेत्र विशेषज्ञ इस ऑपरेशन की सलाह भी नहीं देते।
लेसिक लेज़र
एक नई तकनीक उन सभी लोगों के लिए जो बिना चश्में के साथ देखना चाहते हैं। वैसे तो यह तकनीक 10 साल पुरानी हो चुकी है तथा इससे विश्व भर में लाखों लोग लाभान्वित हो चुक हैं। अमेरिका, चीन तथा जापान में तो यह अत्यन्त लोकप्रिय है। दिल्ली, मुम्बई तथा चेन्नई जैसे महानगरों में भी यह पिछले 5-6 सालों में उपलब्ध है। अभी तक अधिकतर लोग इसके लिए इन्हीं महानगरों में जाते रहें है।
परन्तु अब यह उत्तम सुविधा अपने ही शहर में उपलब्ध कराई जा रही है।
लेसिक लेज़र क्या है?
लेसिक में पहले सर्जन एक ऑटोमैटिक ”माइक्रो किराटोम” से कार्निया की 1/6 मोटाई की परत को उठाते हैं। इसके बाद कार्निया की गोलाई को नम्बर के हिसाब से कम्प्यूटराइज्ड ”एक्साइमर” लेज़र में बदल देते हैं।
माइनस नम्बर के चश्में लगाने वालों के लिए गोलाई कम कर देते हैं एवं प्लस नम्बर के चश्में के लिए गोलाई बढ़ा देते हैं। एस्टिगमेटिज्म (सिलेन्डर नम्बर) में कार्निया की गोलाई उसके दोष के हिसाब से बदली जाती है।
यह पूरा कार्य इस पन्द्रह मिनट में हो जाता है, और मरीज साफ तरीके से बिना चश्में के देख सकता है। लेज़र सही जगह पर हो इसके लिए इसमें तीव्र गति का एक्टिव ऑटो-टे्रेकर लगा हुआ है। यह लेज़र करते समय लेज़र बीम को सही जगह पर केन्द्रित करता है, एवं ऑंख हिलने पर उसी हिसाब से बीम की दिशा को बदल देता है।
यह मशीन शुध्द परिणाम देती है। इसके पूर्णत: कम्प्यूटर द्वारा संचालित होने की वजह से इसमें मानवीय त्रुटियों से बचना भी संभव है तथा यह आपरेशन के बादल पुतली कर कोई निशान भी नहीं छोड़ती।
लेसिक लेज़र किसके लिए है?
1. चश्मा पहनने वाले व्यक्ति की आयु 18 साल या अधिक होनी चाहिए।
2. उसके चश्में का नम्बर पिछले 1 साल से स्थिर होना चाहिए।
3. सामने की पुतली अर्थात कार्निया स्वस्थ होना चाहिए।
4. ऑंख में कोई और रोग न हो, तथा पर्दा भी स्वस्थ हो।
5. मरीज गर्भवती न हो।
6. इसके अतिरिक्त कुछ अन्य शारीरिक रोगों की उपस्थिति में भी लेसिक नहीं किया जाता है।
ऑपरेशन से पहले ऑंखों की विस्तृत जाँच के दौरान यह सभी बातें मरीज से पूछ ली जाती है।
क्या ऑपरेशन के कुछ खतरे हैं?
जैसा कि किसी भी इलाज के बारे में कहा जा सकता है, इस इलाज में भी कुछ खतरे है, यद्यपि गम्भीर खतरे कोई भी नहीं है।
1. ऑपरेशन के बाद भी हल्का सा नम्बर बचा रह सकता है, परन्तु चश्में पर निर्भर होने की आवश्यकता बहुत कम या न के बराबर हो जाएगी उदाहरण के लिये यदि ऑपरेशन से पूर्व किसी का नम्बर माइनस 4 था और बाद में माइनस 0.5 रह जाता है तो भी उसे चश्में की आवश्यकता नहीं होगी। यदि माइनस 12 वाले मरीज का माइनस 1 रह जाता है, तो भी वह चश्में पर निर्भर नहीं हैं।
2. ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों, तक रोशनी के चारों तरफ रंगीन घेरे या हल्की चौंध दिखाई देना कुछ ही दिनों में यह ठीक हो जाता है।
3. शुरू में पढ़ने में मामूली दिक्कत आना। कुछ ही दिनों में यह भी ठीक हो जाता है।
4. संक्रमण की संभावना बहुत ही कम है।
5. शुरू में कुछ दिनों तक ऑंखों में मामूली सूखापन, कुछ सप्ताह तक दवा डालने पर यह भी ठीक हो जाता है।
लेसिक ट्रीटमेंट से पूर्व सावधानियां
1. कॉन्टेक्ट लेन्स का प्रयोग 2 हफ्ते पहले से बन्द कर दें।
2. सिपलॉक्स आई ड्रॉप एक बूंद दिन में चार बार चार दिन पहले से दोनों ऑंखों में डालना शुरू कर दें।
3. लेज़र ट्रीटमेंट के दिन किसी खुशबूदार चीज का प्रयोग न करें।
मशीन की विशेषताएं
यहाँ पर लगी मशीन विश्व की सबसे आधुनिक NIDEK NAVEK EC-5000 CXIII मशीन है। यह जापान से आयात की गयी है। यह एकमात्र ऐसी मशीन हैं, जिसमें पढ़ने वाले चश्मे को भी हटाने की क्षमता है (Presbyopia Treatment Capability)। इसके अलावा इस मशीन की विशेषता यह है कि यह प्रत्येक मरीज की ऑंखों की बनावट तथा आवश्यकता के अनुसार विशेष कम्प्यूटरीकृत प्रोग्राम के अन्तर्गत कार्य करती है, जिससे निगाह की सभी त्रुटियां दूर हो जाय और उस मरीज को अच्छी से अच्छी निगाह मिल सके। इसी को कहते हैं ”वेवफ्रन्ट” आधारित सी-लेसिक (Wavefront based C-Lasik) अर्थात् कस्टमाइज्ड़ लेसिक (Customised Lasik) है तथा साधारण लेसिक (Standard Lasik) से महंगा है। एबेरोमीटर (ABERROMETER) नामक विशेष संयत्र द्वारा ऑंखों की जाँच के बाद ही पता चलता है कि किसे इसकी आवश्यकता है और किसे नहीं।
यदि आप यह आपरेशन करवाना चाहें तो ऑपरेशन से पहले ऑंखों की विस्तृत जाँच के लिये समय लीजिए।
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