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काला मोतिया क्या है?

काला मोतिया में आंखों के कोटरों के द्रव का दबाव काफी अधिक हो जाता है – इतना अधिक कि आंख उसे लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। सामान्य रूप से काला मोतिया दोनों आंखों में होता है, लेकिन यह एक आंख में दूसरी आंख की तुलना में शीघ्र प्रारंभ हो सकता है। जब लंबे समय तक आंखों का दबाव अत्यधिक अधिक होता है तो इससे दृष्टि तंत्रिकाओं की तंत्रिका तंतु धीरे-धीरे मरने लगते हैं और दृष्टि क्रमशः कमजोर होती जाती है। इस प्रकार से नष्ट होने वाली दृष्टि कभी भी वापस नहीं पाई जा सकती है।

काला मोतिया कैसे होता है?

यह आंख के अंदर प्रवाहित होने वाले द्रव ‘एक्वस ह्यूमर’ के एकत्र होने से होता है। यह एकत्रीकरण या तो द्रव के अत्यधिक बनने से होता है या इसको निकालने वाली नली ‘कैनाल आफ शेल्म’ के अवरुध्द होने से होता है। चूंकि नया द्रव लगातार बनता रहता है इसलिए दबाव बढ़ता रहता है।

क्या काला मोतिया दृष्टि को नष्ट कर सकता है?

यदि उपचार न किया जाए तो हां। बढ़े हुए दबाव से आंख के पीछे की संवेदनशील कोशिकाओं का पोषण करने वाली रक्त वाहनियां संकुचित हो सकती हैं । इससे ये कोशिकाएं धीरे-धीरे मर जाती हैं और दृष्टि लगातार कम होती जाती है। किनारे की दृष्टि का धुंधला होना तथा कम रोशनी में कम दिखाई देना पहले लक्षण प्रकट होते हैं। जैसे-जैसे स्थिति खराब होती है और तंत्रिका कोशिकाएं नष्ट होती जाती हैं एवं दृष्टि और संकुचित होती जाती है। यदि उपयार न किया जाए तो इस प्रक्रिया से पूर्ण अंधता अवश्यंभावी है।

यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी को काला मोतिया है?

सामान्यत: नहीं। कालो मोतिया अंदरूनी चीज होती है। काफी सारे मामले कई महीनों या सालों में धीरे-धीरे विकसित होते हैं। अधिकांश मामलों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। नुकसान इतना धीरे होता है कि लोग अमूनन दृष्टि के कमजोर होने के बारे में जान भी नहीं पाते हैं। कुछ लोगों में हल्के फुलके लक्षण दिखाई देते हैं और ये इस बात को रेखांकित करते हैं कि आंखों का उचित परीक्षण आवश्यक है। लक्षण्ाों में बार बार चश्मा बदलना, अंधेरे कमरों में समायोजन में कठिनाई, किनारों की दृष्टि का ह्रास तथा सामान्य रूप से धुंधला दिखना सम्मिलित हैं। बहुत कम मामलों में अन्य लक्षण जैसे कि आभा या प्रकाश स्रोतों के इर्द गिर्द इन्द्रधनुष का दिखना तथा धुंधली दृष्टि से संबंधित तेज सरदर्द तथा लाल आंखें प्रकट हो सकते हैं।

काला मोतिया किसे होता है?

बहुधा यह मध्य आयु तथा उसके बाद में होता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हर कोई जिसकी आयु 40 वर्ष से अधिक हो सुसज्जित नेत्र चिकित्सालय में हर दो साल में एक बार अपनी आंखों का गहन परीक्षण कराए। काला मोतिया का एक दुर्लभ रूप शिशुओं में भी पाया जाता है। इन शिशुओं की एक या दोनों आंखें असामान्य रूप से बड़ी दिखाई देती हैं। उन्हें तेज प्रकाश मं आंखें खोलने में कठिनाई होती है तथा प्रभावित आंख से काफी अधिक मात्रा में पानी गिरता है। डायबिटीज के रोगी, या वे लोग जिनके संबंधियों को काला मोतिया हो चुका है, खतरे वाले समूह में आते हैं। जिनके परिवार में काला मोतिया का इतिहास है उन्हें और अधिक सतर्क रहना चाहिए तथा उन्हें अपनी आंखों की जांच नियमित रूप से करानी चाहिए।

क्या काला मोतिया के कई रूप होते हैं?

हां, इसके कई रूप होते हैं। सबसे सामान्य रूप हैं: क्रोनिक, एक्यूट, कोजेनाइटल तथा सेकेन्डरी। इन सभी पर लंबे समय तक ध्यान देना होता है; बहुधा पूरे जीवन भर।

साधारण या क्रोनिक काला मोतिया: यह लगभग 80 प्रतिशत मामलों में होता है। यह धीरे-धीरे बढ़ता है तथा कई महीनों या सालों तक प्रकट नहीं होता है और दृष्टि धीरे-धीरे गिरती जाती है। इसके सामान्य लक्षण हैं: चश्मे का बार-बार बदलना क्योंकि कोई भी चश्मा सहायता करता नहीं लगता; आंखों में दर्द या असामान्यता; किनारे की दृष्टि का धुंधला होना तथा अंधेरी जगहों में समायोजन में कठिनाई। इस प्रकार का काला मोतिया सामान्य रूप से दवाओं के प्रयोग से अच्छ परिणाम देता है, हांलाकि दवा प्रतिरोधी मामले हमेशा देखे जाते हैं। उपचार सामान्यत: पूरे जीवन चलता है ताकि दबाव को नियंत्रयण में रखा जा सके। प्रतिरोधी मामलों में आपरेशन ही एक मात्र इलाज है।

एक्यूट काला मोतिया: यह कम होता है। इसमें आंखों का दबाव अचानक बहुत अधिक बढ़ जाता है तथा तेज दर्द होता है और दृष्टि कमजोर हो जाती है। यदि इसका उपचार तुरंत न किया जाए तो यह बहुत कम समय में दृष्टि को सदैव के लिए नष्ट कर सकता है। क्रोनिक काला मोतिया के विपरीत एक्यूट काला मोतिया में काफी स्पष्ट लक्षण दिखाई देते हैं: जैसे कि तेज दर्द, धुंधला दिखना, रोशनी के स्रोतों के इर्द-गिर्द आभाओं का प्रकट होना, चक्क्र तथा उल्टी।

सेकेन्डरी काला मोतिया: इस प्रकार का मोतिया आंखों की पहले विद्यमान समस्याओं जैसे कि इट्रिस, रेटिनल डिटैचमेंट, बहुत अधिक पके सफेद मोतिया या आंख में टयूमर के कारण होता है।

कान्जेनाइटल काला मोतिया: यह बहुत कम होता है तथा उन बच्चों में होता है जो दोषपूर्ण निकासी नलिकाओं के साथ जन्म लेते हैं। इससे आंख धुंधली दिखाई देती है तथा आंख असामान्य रूप से बड़ी दिखती है। बच्चा प्रकाश से घबराता है तथा प्रकाश से बचने के लिए आंखें बंद रखता है। बच्चे की आंखों से काफी अधिक पानी भी निकल सकता है। इन लक्षणों से पता चलता है कि बच्चे की आंखों को विशेषज्ञ द्वारा जांचने की आवश्यकता है।

काला मोतिया की जांच कैसे की जाती है? काला मोतिया के विशेष टेस्ट क्या हैं?

केवल योग्य आंख विशेषज्ञ के पास ही इस दशा की जांच करने के लिए क्षमता तथा उपकरण होते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि 40 वर्ष की आयु के आस पास का हर व्यक्ति नेत्र विशेषज्ञ से आंखों की पूरी जांच कराए। आंख की इस जांच का सबसे महत्वूपर्ण भाग है टोनोमीटर नाम के एक उपकरण से आंख के दाब की जांच करनां इसे सामान्यत: ‘दाब लेना’ कहते हैं। यह जांच कुछ सेकण्डों में हो जाती है तथा इसमें कोई दर्द नहीं होता है।

यदि आंखों का दाब अधिक मिलता है केवल तभी कई सारी अंतिम जांचें की जाती हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति को वास्तव में बीमारी है भी या नहीं। इनमें सम्मिलित हैं:

गोनियोस्कोपी: इस जांच से चिकित्सक जान पाता है कि रोगी किस प्रकार के काला मोतिया से पीड़ित है। गोनियोस्कोप नाम का एक विशेष कान्टैक्ट लेन्स आंखों पर रखा जाता है तथा एक विशेष प्रकार के माइक्रोस्कोप ‘स्लिट लैम्प बायो माइक्रोस्कोप’ का उपयोग करते हुए आंख के अंदर देखा जाता है। यह जांच दर्द रहित होती है तथा कुछ मिनटों में पूरी हो जाती है।

फील्ड टेस्ट (पेरीमेट्री): यह जांच एक विशेष कम्प्यूटरीकृत मशीन पर की जाती है तथा दृष्टि तंत्रिका को बीमारी से हुए नुकसान के बारे में जानकारी देती है। यह बहुत संवेदनशील जांच है और इससे बीमारी की पहचान बहुत शुरुआती चरण में ही की जा सकती है जब कोई महत्वपूर्ण नुकसान न हुआ हो। इसे बार बार 3 से 6 महीनों के अंतराल पर करने की आवश्यकता होती है ताकि यह देखा जा सके कि बीमारी नियंत्रण में है या नहीं। इससे यह जानने में सहायता मिलती है कि रोगी को कितना इलाज चाहिए और यह किस प्रकार चल रहा है।

रिफ्रैक्शन: यह चश्में की जांच से संबंधित है तथा उन सभी रोगियों पर किया जाता है जिन्हें काला मोतिया है तथा जब भी वे चिकित्सक के पास दुबारा जांच के लिए आते हैं। इससे यह जाना जा सकता है कि क्या दृष्टि बनी हुई है या यह खराब हो रही है।

क्या आंख की नियमित जांच आवश्यक है?

यदि यह पता चल गया है कि किसी को काला मोतिया हो गया है तो दाब परीक्षण, फील्ड टेस्ट तथा रिफ्रैक्शन को बार बार दोहराने की आवश्यकता होती है ताकि यह जाना जा सके कि बीमारी नियंत्रण में है या नहीं। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि रोगी अपने आंखों के डाक्टर से लिए समय पर अवश्य उपस्थित हो। यदि आपके घर या कार्य की जिम्मेवारियां, धन का अभाव, या आवागमन में कठिनाई आपके अस्पताल आने में या दवा लेने में बाधक हों तो आपको अपने डाक्टर से खुलकर बात करनी चाहिए। वह आपको सहायता के लिए सही जगह बताने में सक्षम हो सकते हैं।

क्या काला मोतिया का इलाज संभव है?

हांलाकि काला मोतिया का इलाज संभव नहीं है परंतु इसे उचित उपचार से सामान्यत: नियंत्रित किया जा सकता है। काला मोतिया एक क्रोनिक जीवन भर चलने वाली बीमारी है जिसके लिए लगातार निरीक्षण तथा रोगी का प्रबंधन चाहिए ताकि बढ़े हुए आंख के दाब को नियंत्रण में रखा जा सके एवं दृष्टि के ह्रास को रोका जा सके। जितनी जल्दी इसको पहचाना जाएगा एवं इलाज किया जाएगा, दृष्टि के ह्रास को रोकने में उतनी सफलता प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाएगी।

काला मोतिया का उपचार किस प्रकार किया जाता है?

डालने की दवा तथा टिकिया: सामान्यत: इसका नियंत्रण आंख में डालने की विशेष दवाओं से किया जाता है। यदि किसी एक प्रकार की डालने वाली दवा से वांछित परिणाम न मिल रहा हो तो इसमें कुछ और दवा की आवश्यकता हो सकती है या इसकी जगह पर दूसरी दवा डालनी पड़ सकती है। कभी-कभी टिकिया लेने की भी आवश्यकता होती है। यह बहुत आवश्यक है कि दवाएं नियमित रूप से प्रयोग की जाएं तथा ठीक उसी प्रकार से जैसे डाक्टर ने बताया है। चूंकि दवाओं का असर केवल कुछ घंटों तक ही रहता है इसलिए उन्हें समयानुसार डालना चाहिए ताकि काले मोतिया को नियंत्रण में रखा जा सके।

डालने वाली दवाओं के परिणाम: कभी-कभी आंख में डालने वाली दवाओं से आंखों में चुभन या दर्द हो सकता है। इससे मुक्ति के लिए आंखों को रगड़ना या धोना नहीं चाहिए। कुछ दवाओं से दृष्टि धुंधली या कम हो सकती है परंतु इसके बारे में चिंता न करें तथा इसके बारे में डाक्टर को बताएं। कई बार कुछ दवाओं से सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, या सर दर्द हो सकता है, या पसीना आ सकता है, आदि। यदि ऐसा है तो डाक्टर को अवश्य बताएं ताकि वह विकल्पों के बारे में सुझाव दे सकें।

कितनी बूंदें डालें: दवा की एक ही बूंद वांछित परिणाम के लिए आवश्यक है। इसलिए अधिक न डालें। दवा की बूंद डालने के बाद अपनी आंखें बंद रख कर 6 मिनट प्रतीक्षा करें तथा उसके बाद ही कोई अन्य दवा डालें। यदि दवा कर रंग बदल गया हो तो उसका उपयोग न करें। सभी दवाओं को बच्चों की पंहुच से दूर रखें क्योंकि वे जहरीली होती हैं।

टिकियों के परिणाम: यदि टिकिया लिखी गई हैं तो वे हाथ एवं पैरों की उंगलियों में झुनझुनी कर सकती हैं। इनसे आलस्य आ सकता है तथा पेट भी खराब हो सकता है। ये परिणाम सामान्यत: हल्के होते ळें।

हांलाकि ये परिणाम परेशान करने वाले हो सकते हैं, पर इन्हें आंख बचाने के लिए बर्दाश्त करना चाहिए। दवाओं को डाक्टर की सलाह के बिना कभी भी बंद नहीं करना चाहिए अन्यथा आंखों को सदैव के लिए नुकसान हो सकता है।

आपरेशन: जब काला मोतिया पर्याप्त रूप से दवाओं से नियंत्रण में नहीं आ पाता है, आपरेशन आवश्यक हो जाता है। सामान्यत: आपरेशन के माध्यम से यह दबाव को सामान्य स्तर तक लाना तथा दृष्टि के ह्रास के स्थाई रूप से रोकना संभव होता है। कभी कभी आपरेशन के बाद भी दाब को नियंत्रण में रखने के लिए आंख में दवा डालनी पड़ सकती है ताकि दबाव को नियंत्रण में रखा जा सके। इसे जीवन भर चलाना होता है। किसी आपरेशन की तरह काला मोतिया के आपरेशन के भी अपने खतरे होते हैं तथा आपरेशन का निर्णय लेते आपरेशन के लाभ की तुलना इन खतरों से करनी चाहिए। आपरेशन के बाद जब आंख स्थिर हो जाए तथा दाब नियंत्रण में आ जाए तब भी रोगी को अपने आंख का दाब की जांच समय समय पर करवाते रहना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आपरेशन ठीक से कार्य कर रहा है। इसी कारण से वर्ष में एक बार फील्ड टेस्ट भी करवाना चाहिए।

लेसर उपचार

काला मोतिया के कुछ चुनींदा मामलों में लेसर उपचार बहुत प्रभावी नया तरीका है। यह उपचार की मेडिकल या सर्जरी विधियों का स्थान तो नहीं ले सकता परंतु यह उपचार का एक महत्वपूर्ण तरीका अवश्य है।

कुछ अंतिम सलाह

यदि काला मोतिया की उपेक्षा की जा रही है या इसका इलाज नहीं किया जा रहा है तो इससे दृष्टि का ह्रास अवश्य होगा तथा अंत में व्यक्ति पूर्ण रूप से अंधा हो जाएगा। इसलिए काले मोतिया के रोगी को:

  • जब बुलाया जाए तब नियमित रूप से अस्पताल आना चाहिए
  • आंख में डालने की दवा/टिकियों का समय पर उपयोग करना चाहिए
  • एक दिन के लिए भी इलाज नहीं बंद करना चाहिए (जब तक डाक्टर ने ऐसा कुछ विशेष जांचों के लिए न कहा हो)
  • यदि उसकी दशा में कोई परिवर्तन हो तो डाक्टर को तत्काल बताना चाहिए

इस अस्पताल में कम्प्यूटरीकृत पेरीमीटर तथा लेसर मशीनों सहित सभी प्रकार के उपकरण मौजूद हैं ताकि काला मोतिया के मरीजों की पूरी देखभाल हो सके।

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